Rajbhar Samaj | राजभर समाज का इतिहास | History & Origins

 राजभर समाज का इतिहास और उत्पत्ति

भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना में हर जाति और समुदाय की अपनी एक विशिष्ट पहचान रही है। इन्हीं समुदायों में से एक है राजभर समाज (Rajbhar Samaj)। राजभर समाज का इतिहास और उत्पत्ति प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह समाज अपने परिश्रम, साहस और समर्पण के लिए जाना जाता है।

राजभर शब्द की उत्पत्ति

"भर" शब्द संस्कृत के भरत शब्द से निकला माना जाता है। भर जाति प्राचीन भारत की मूल जातियों में से एक रही है, जिनका उल्लेख विभिन्न ग्रंथों और शिलालेखों में मिलता है। बाद में इन्हें राजभर कहा जाने लगा। राजभर का अर्थ है – "राज करने वाले भर"। यह उपाधि उन भर लोगों को दी गई जिन्होंने कभी प्राचीन भारत में शासन किया और समाज को संगठित किया। और समाज में एक जुटता बनाये रखा। तथा विदेशी आक्रांताओं को घुटने पर  लाया।

प्राचीन इतिहास में राजभर समाज

इतिहासकारों का मानना है कि राजभर समाज का संबंध प्राचीन भर राजाओं से है। यह राजवंश उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में फैला हुआ था। रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी भर जाति का उल्लेख मिलता है। उस समय यह समाज कृषि, युद्धकला और शासन व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।

सिंधु घाटी सभ्यता और गंगा–यमुना दोआब क्षेत्र में बसे लोग अपने आप को भर समाज से जोड़ते हैं। धीरे-धीरे समय के साथ यह समाज विभिन्न क्षेत्रों में फैल गया और अपनी मेहनत व परंपराओं से नई पहचान बनाई।

मध्यकाल में स्थिति

मध्यकाल में जब विदेशी आक्रमण हुए और समाज में बड़े बदलाव आए, तब राजभर समाज भी उससे प्रभावित हुआ। कई जगहों पर इनकी सत्ता समाप्त हो गई और धीरे-धीरे यह समाज किसानों और मजदूरों की श्रेणी में आ गया। 

हालाँकि, इस समय भी राजभर समाज ने खेती, श्रम और स्थानीय प्रशासन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। इस समाज ने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी परंपराओं और संस्कृति को बनाए रखा।

आधुनिक काल में राजभर समाज

ब्रिटिश शासन के समय राजभर समाज को सामाजिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अंग्रेज़ी प्रशासन में इन्हें पिछड़े वर्ग में गिना गया।

आजादी के बाद भी यह समाज शिक्षा और आर्थिक दृष्टि से पीछे रहा। लेकिन 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से धीरे-धीरे इस समाज ने अपनी स्थिति सुधारनी शुरू की। सामाजिक आंदोलनों और राजनीतिक भागीदारी के माध्यम से राजभर समाज ने अपनी पहचान मजबूत की। तथा विभिन्न क्षेत्रों में सक्रियता से और निस्ठा पूर्वक काम करते है। 

राजभर समाज और राजनीति

आधुनिक भारत में राजभर समाज राजनीतिक रूप से भी सक्रिय हुआ। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में यह समाज OBC (Other Backward Class) के अंतर्गत आरक्षण पाता है। कई राजभर नेता राजनीति में उभरे जिन्होंने समाज की समस्याओं को उठाया और इसके अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

राजभर समाज के कुछ महत्वपूर्ण  और सक्रिय नेता है जिन्होंने समाज के लिए बहुत सारे महत्वपूर्ण कार्य किये है। जैसे- ओमप्रकाश राजभर (OP Rajbhar), अनिल राजभर (भाजपा), विजय राजभर ( पूर्व विधायक घोसी), और कुछ ग्राम प्रधान जो राजभर समाज से समबन्ध रखते है। जैसे कि  विजय कुमार राजभर (पूर्व प्रधान बाड़ा मऊ उत्तर प्रदेश ), जितेन्द्र राजभर (वर्तमान प्रधान बाड़ा  मऊ उ.प्र), अरविन्द राजभर (भाजपा) इत्यादि। नेता है। जो सभी धर्मों और वर्ण के लिए अच्छा काम करते है। जिनमें कोई भेदभाव कि भावना नही देखी जाती है। और एक अच्छे नेता और समाजिक कार्यकरता को हमेशा ईमानदारी पूर्वक काम करना चाहिए। और कोई भी भेदभाव नही करना चाहिए। और समाज को एक सही मार्गदर्शन देना चाहिए। ताकि समाज का भलाई हो सके। 

संस्कृति और परंपरा

राजभर समाज की संस्कृति भारतीय ग्रामीण संस्कृति से मेल खाती है। यह समाज अपने त्योहारों, मेलों और धार्मिक आयोजनों में सक्रिय रहता है। छठ पूजा, होली, दीपावली और सावन जैसे पर्व राजभर समाज में विशेष उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।

इनकी बोली-भाषा क्षेत्र के अनुसार बदलती है, जैसे – हिंदी, अंग्रेजी भोजपुरी, अवधी, मगही और हिंदी। संगीत और लोकगीत भी इस समाज की पहचान हैं।

आज का राजभर समाज

आज राजभर समाज पूरे भारत में फैला हुआ है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, झारखंड और महाराष्ट्र में इनकी बड़ी आबादी है। शिक्षा, राजनीति और व्यवसाय के क्षेत्र में यह समाज धीरे-धीरे प्रगति कर रहा है।

निष्कर्ष

राजभर समाज का इतिहास और उत्पत्ति यह दर्शाता है कि यह समुदाय प्राचीन भारत के गौरवशाली अतीत से जुड़ा है। कभी यह समाज शासन करने वाला था, बाद में परिस्थितियों ने इसे कृषक और श्रमिक बना दिया, लेकिन इसकी मेहनत और संघर्ष की परंपरा आज भी जारी है। तथा अब बहुत से लोग वकालत, इंजीनियरिंग तथा सेना में शामिल हो कर देश के हित में काम कर रहे है। और समाज में एक मिशाल कायम कर रहे है। 

आज राजभर समाज अपनी पहचान, संस्कृति और परंपराओं को संजोते हुए शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। इसका इतिहास हमें यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, संघर्ष और परिश्रम से अपनी पहचान को फिर से स्थापित किया जा सकता है।


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